सोचिये
किसी मज़लूम को अपनी बेटी बनाने का हुनर भी सीखिए
जिन्दगी में प्यार का दीपक जलाने का चलन भी सीखिए
दुश्मनों के जख्म पर प्यार से मरहम लगाना सीखिए
देवता तो बन नहीं सकते आदमी बन कर जरा तो देखिये
मज़हबे- नफरत का ज़हर दिलो से तो हटा कर देखिये
मुखौटे चेहरों से हट दिलों को जोड़ना भी जरा तो सीखिए
नमक जख्मो पर छिडकने की आदत मिटा कर देखिये
दो कदम खुद राहे-मोहब्बत पर चल कर जरा तो देखिये
मशाले चाहतों व उल्फतों की सरे-अंजुमन जला कर देखिये
गंगो-जमन की तहजीब के चरांगो को जला कर तो देखिये
अज़ीज़ जौनपुरी
uttam vichar
ReplyDeleteबहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! आपका ब्लॉग के रचनाएँ मिली क्या ?
ReplyDeletelatest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
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