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Saturday, September 1, 2012

Kumar Anil :Benakab

बेनक़ाब 


कर ख़ुद को बेनक़ाब  जरा  ख़ुद को  देखिए 
पता  कातिल का  हुज़ूर न    मुझसे  पूछिए 
हर  गली  हर  मोड़ पर हमशक्ल ही  मिलेंगे                                 
जरा कुछ रौशनी तो करो,बस आप ही दिखेंगे 

धुप अँधेरा  हो गया अब यहाँ की  बस्तिओं में 
हर रोज़  बनकर  मौत अब चीखती  है जिंदगी 
हम कहाँ जाएँ किसे  आवाज़ दें किसको बुलाएं 
समझ भाग्य की रेखा इसे हम ख़ामोश हों जाएँ?

कर कत्ल खुद इल्ज़ाम सब मेरे नाम लिख दिया
क़िताबे ज़ुर्म की तहरीर क्यों  मुझको बना दिया
यक़ीनन जख्म मेरा और गहरा कर दिया तुमने
पता अपना बताना था  पता क्यूँ मेरा बता दिया 


                                              अज़ीज़  जौनपुरी 





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