बेनक़ाब
कर ख़ुद को बेनक़ाब जरा ख़ुद को देखिए
पता कातिल का हुज़ूर न मुझसे पूछिए
हर गली हर मोड़ पर हमशक्ल ही मिलेंगे
जरा कुछ रौशनी तो करो,बस आप ही दिखेंगे
धुप अँधेरा हो गया अब यहाँ की बस्तिओं में
हर रोज़ बनकर मौत अब चीखती है जिंदगी
हम कहाँ जाएँ किसे आवाज़ दें किसको बुलाएं
समझ भाग्य की रेखा इसे हम ख़ामोश हों जाएँ?
कर कत्ल खुद इल्ज़ाम सब मेरे नाम लिख दिया
क़िताबे ज़ुर्म की तहरीर क्यों मुझको बना दिया
कर कत्ल खुद इल्ज़ाम सब मेरे नाम लिख दिया
क़िताबे ज़ुर्म की तहरीर क्यों मुझको बना दिया
यक़ीनन जख्म मेरा और गहरा कर दिया तुमने
पता अपना बताना था पता क्यूँ मेरा बता दिया
अज़ीज़ जौनपुरी
very nice uncle.
ReplyDeletenice one uncle
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteyah kaisi sacchaye hai,katil koe aur elzam kisi aur par,bahut accha likha hai
ReplyDeleteUttam...
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