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Friday, August 10, 2012

अज़ीज़ जौनपुरी बज्रपात

 

सपने आँखों में उनके  सजे  भी  न  थे
की   सजने  के  पहले  सहर  हो  गयी
ख्वाब 'बनने के दुल्हन' सज ही रहे थे
सच होने के पहले  वो  शहीद हो गये,
उनके  ख्वाबो  में  पर लगे  भी  न थे
की लगने के पहले वो विखर उड़  गये  

                                                                                                                                                                   कैसा  दुर्भाग्य  था  केसी  बिजली  गिरी
व्याह  होने के  पहले  ही वो  बिधवा हुई
सुन सखियो  की  अठखेलियाँ   रुक  गई
उनके  पावों   तले  की  जमी धंस गयी

उनके  वैधव्य  पर  क्या  रुदन  था  मचा
 उनके  सीने  पर  ज्वालामुखी  फट गया, 
 सुन जिसे  आंसुओं  की  झड़ी  लग गयी
 सरे आरमान  उनके बन  कफ़न  रह गये

 वक्त  केसा कठिन  जो  उनपे है गुजरा
मांग भरने  के पहले  ही ये क्या  हो गया, 
 उनको विधवा  कहें या  कहें   क्या उन्हें
सिन्दूर लगने  पहले    ये क्या हो गया

 उनके  माथे  पे  बिंदिया  लगी  भी  न  थी
 लगने के पहले  हवा बन कहर आ गयी,
बिंदिया माथे  कंही की कंही जा गिरी
ख्वाब  बिंदिया के उनके  कंही  उड़ गये

उनके  होठो  पे लाली  लगी   भी  न   थी
लगने  के पहले  ही  गिर  बिखर ही गयी,
सपने  लाली  के  सब  लहू  बन गये
सुर्ख  सारा  बदन हो  जैसे जल ही  गये

उनके  पैरों  में  पाजेब   बंधे  भी न  थे
घुघरू   बजने  के  पहले  ही  चुप हो ये
पाजेब  उनकी खुली की खुली रह गयी
खनक  घुघरुओं  के जैसे  रुदन बन गये

 पोथियाँ  पंडितो  की  खुली  भी  न  थी
खुलने  के  पहले  एक  खबर आ गयी
पोथियाँ  जहाँ की तहां खुली  रह गयी
ख्वाब  फेरों के उनके जल  चिता हो गये


                            अज़ीज़ जौनपुरी

 

 


   
               






                 
             




 

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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