ख़ुशनसी
उन उजालों से तो ये अँधेरे भले हैं
जहाँ जिन्दगी हम बसर कर रहे हैं
पर कटे हम परिंदे ही हैं खुशनसी
देखिए मन ही मन हम उड़ तो रहें हैं
सूखी नदियाँ बहुत खूबशूरत हैं दिखतीं
ख्वाब पानी का बन हम छलकतो रहें हैं
उनसे बेहतर कहीं लगते उनके हैं सपने
देख जिनको हम यूँ बहक तो रहे हैं
खुले अस्मां से तो बंद कमरें हैं बेहतर
बैठ जिसमें हम उनकी सकल पढ़ रहें हैं
उनसें कहीं उनकी आँखें हैं कातिल
जिन्हें पढ़ -पढ़ के हम लिख तो रहें हैं
अज़ीज़ जौनपुरी
vehtareen
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