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Friday, August 31, 2012

Kumar Anil :vakht

वख्त 


है  यह  तकाज़ा  वख्त  का  अब  रुख  बदलो  हवाओं  का 
वरना जलजले रोज ही आते रहेंगे तूं मौत की पहचान बन 
ये दुनिया आज  कुछ ज्यादा  ही समझदारों की  दुनिया है 
गर ख्वाब जीने के ज़ेहन में  हैं तो विद्रोह की आवाज़ बन 
यहाँ अपनों परायों की  ही अब अक्सर बातें रोज़  होती  है    
जीना चाहते हो गर,जरुरी हो गया तूं ज़ुर्म की फ़रियाद बन 
खुदगर्ज़ कुनबापरस्ती हो गई अब नई तहज़ीब दुनिया की 
नहीं हो सकती गुज़र तूं  भी जरा  बिस्फोट की सौगत बन
हैं खूनी दरिंदे  घूमते बेख़ौफ़ हो  अब हर गली हर मोड़ पर
अरमान  जीने के बहुत हों तो  तूं  भी जरा इक कुहराम बन
दर्द सारे जख्म बन अब जिंदगी का नासूर बनने लग गये हैं
जिंदगी में जश्न गर मनाना चाहते हो तो जरा  तलवार बन



                                                  अज़ीज़ जौनपुरी 



1 comment:

  1. vehad talkh tewar ke sath likhi gyee kataro me dhar b-dastur bani rahni chahiye,kabile tarif koshis

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