Pages

Sunday, August 26, 2012

Kumar Anil : beti vyabhichar ki



   बेटी व्यभिचार की 


अनवरत  व्यभिचार  की  जो माँ  होती रही  हरदम  शिकार 
अब उसी व्यभिचार की बेटी हमारे गाँव की इज्ज़त बचाती है
खून -खंज़र भाले-वर्छे की फ़िक्र से हो वो  मुकम्मल  बेखबर 
बन स्वयं सौहार्द्र  की  देवी  वो  शोले अत्याचार के  बुझती है
चंद  सिक्कों  के एवज़  में  अब  आबरु  वो  बिकने  न  देती
धैर्य, साहस, मान, मार्यादा   के  नित  नए  किस्से  सुनती है  
जातिगत  अभिमान की  अग्नि को वो  प्रज्वलि होने न देती 
बन प्यार की जिवंत  भाषा  नित  बंधुत्व के किस्से सुनती है 
धनिया ,फुलिया और कृष्णा अब बाँहों में ढहती नही दिवार सी 
आत्म रक्षा ,मान रक्षा, धर्म  रक्षा की नित परिभाषा बताती है 
रुक गई अब यातना व्यभिचारके संत्राश की भूख की प्यास की  
कर प्रतिज्ञा  आज पूरी अब वही  बेटी प्यार की गँगा बहाती है 
ये भावना है प्यार की, सौहार्द्र की प्रथा देश की सदिओं पुरानी है
अब भूल कर भी प्रतिषोध की ज्वाला हमारे गाँव जलती नही है   



                                                                          अज़ीज़  जौनपुरी 

  


2 comments:

  1. samajik visangatio pr ek alag or nyee sakaratmk prastutu,badhaye swikar kre

    ReplyDelete