बेटी व्यभिचार की
अनवरत व्यभिचार की जो माँ होती रही हरदम शिकार
अब उसी व्यभिचार की बेटी हमारे गाँव की इज्ज़त बचाती है
खून -खंज़र भाले-वर्छे की फ़िक्र से हो वो मुकम्मल बेखबर
बन स्वयं सौहार्द्र की देवी वो शोले अत्याचार के बुझती है
चंद सिक्कों के एवज़ में अब आबरु वो बिकने न देती
धैर्य, साहस, मान, मार्यादा के नित नए किस्से सुनती है
जातिगत अभिमान की अग्नि को वो प्रज्वलि होने न देती
बन प्यार की जिवंत भाषा नित बंधुत्व के किस्से सुनती है
धनिया ,फुलिया और कृष्णा अब बाँहों में ढहती नही दिवार सी
आत्म रक्षा ,मान रक्षा, धर्म रक्षा की नित परिभाषा बताती है
रुक गई अब यातना व्यभिचारके संत्राश की भूख की प्यास की
कर प्रतिज्ञा आज पूरी अब वही बेटी प्यार की गँगा बहाती है
ये भावना है प्यार की, सौहार्द्र की प्रथा देश की सदिओं पुरानी है
अब भूल कर भी प्रतिषोध की ज्वाला हमारे गाँव जलती नही है
अज़ीज़ जौनपुरी
bahut khoob
ReplyDeletesamajik visangatio pr ek alag or nyee sakaratmk prastutu,badhaye swikar kre
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