बौना
प्रगतिगामी विश्व का विस्तार बौना हो गया
आदमी जो आदमी था अब खिलौना हो गया
प्रगति की मत पूछिए विश्वास खंज़र हो गया
एहसास घट, घटता गया घट के बंज़र हो गया
ज़िन्दगी की ज्यामिती का कोंण विकृत हो गया
प्यार का बहुभुज सिमट लोहित तिकोना हो गया मर गयी इंसानियत अब दुश्वार जीना हो गया
हो गयी नीलम गैरत जिश्म एक झरोखा हो गय
देखते ही देखते आदमी अब क़त्ल कातिल हो गया
रिश्ते जले जलते रहे जल -जल के जलना हो गया
सूखी हया ज़ज्बात झुलसे अब सब पत्थर हो गया
आदमी की प्रगति देखो अबवो बंदर सरीखा हो गया
बदली प्यार की भाषा सिकुड़ शब्द जाहिल हो गया
सब कुछ घटा घटता गया घट -घट घटाना हो गया
अज़ीज़ जौनपुरी
behtareen likha hai aapne Singh sahab..
ReplyDeletebehtareen prastuti.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
ReplyDeletekya khoob likha hai,vakayee me sb kuch bauna hota ja raha hai
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