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Friday, August 24, 2012

Kumar Anil ; Bevasi

बेबसी 


हालाते -बेबसी है, या किसी  की  बेरुखी है 
जिश्म का सामान सरे बाजार लिए बैठी हूँ 
तूफाने -समंदर है या किसी की फितरत है 
जिश्म से पर्दा हटा  सुबह से  तैयार बैठी हूँ 
गमे -दरिया है  या  किसी  की   हरकत  है 
जिश्म के घावों खुला छोड़ सड़क पर बेठी हूँ 
खुदगर्ज़ सियासत है या किसी की नफ़रत है
हर मॉल की नुमाईस  लगा सज  के बैठी हूं 
साजिसे -कातिल है या  किसी का खंज़र है 
जख्मे-ज़िगर की  रियाशत  लिए बैठी  हूँ 
अरमाने -कफ़न  है  या  कब्रे   दफ़न   है 
शर्म के आँचल  में  सब  खोल  के  बैठी हूँ


                               अज़ीज़  जौनपुरी 






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