एक दिन मेरे बाँये हाथ ने
मेरे ही गाल पर जोर का
एक तमाचा जड़ दिया ,
मेरी गलती सिर्फ
और सिर्फ यह थी कि
मैं अपने बूढ़े घिसे पिटे चेहरे पर
एक नया चेहरा लगाने की
नाकाम कोशिश कर रहा था
बाएं हाथ ने एक बार फिर अपना
सीना चौड़ा कर दहाड़ते हुए कहा
प्रोफेसर साहेब , जब मैं सदियों से
अपनी नैतिकता बड़े गर्व से
निभाते चला आ रहा हूँ ,
तो तुम क्यों अपनी सूरत बिगाड़ने में लगे हो
मुझे तुम्हारा बूढ़ा चेहरा बेहद खूबसूरत लगता है
वादा करो, अब ऐसी हरकत कभी नहीं करोगे
और इसी चेहरे पर कायम रहोगे वरना
तमाचे पर तमाचे पड़ते रहेंगे
और तुम इसी तरह बिलबिलाते रहोगे ।
अज़ीज़ जौनपुरी
bahut sahi
ReplyDelete