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Wednesday, July 11, 2012

अज़ीज़ जौनपुरी : वादा

  वादा 
                                                                                                                                                                          चुनावों का दंगल मचने लगा है
वादों का बाज़ार सजने लगा है
वादों - पे -वादे  किए  जा रहे हैं                                       
वादों  के  नारे  दिए  जा  रहे  हैं

वादों की महफिल सजने लगी है
वादों   पे  मुजरे  लिखे  जा रहे हैं
वादों  के  खंजर   गढ़े  जा  रहे हैं
वादों   के  बारूद   भरे  जा  रहे हैं

वादों  के   खेमे  बने  जा  रहे हैं
रिश्तों के हिस्से किए जा रहे हैं
सियासत के शोले दहकने लगे हैं
शातिर  इरादे   भड़कने  लगे हैं

क्षेत्रों   के  नक्शे  किए  जा रहे हैं
क्षेत्रीयता के नगमे लिखे जा रहे हैं
मोहब्बत के रिश्ते दफन हो रहे हैं
शराफत के टुकड़े किए जा रहे हैं

मुल्क  हिस्सों में  बटा जा रहा है
रिश्तें सारे  के सारे जले जा रहे हैं
स्वदेशी  विदेशी यहाँ का  वहाँ का
कैसे- कैसे  ये नारे दिए जा रहे हैं

पुरबिया ,पहाड़ी इधर का उधर का
बिहारी, असमिया  यहाँ से वहाँ से
मराठी , उड़िया  इधर  से उधर से
नारे  ग़ज़ब  के  दिए  जा  रहे हैं

सबके   बेटे -बहू   और बेटियाँ
कहीं  न  कहीं जा बसे जा रहे हैं
अपने -गैरों के किस्से कहे जा रहे हैं
कैसे शातिर इरादे बढ़े जा रहे हैं

खून ,खंजर के शोले दहकने लगे हैं
क्षेत्रीयता के बारूद भडकने लगे हैं
हाथ खंजर लिए अब बढ़े जा रहे हैं
मोहब्बत के टुकड़े किए जा रहे हैं

वादों  की  ऐसी  बीमारी  लगी है
एड्स से भी अब ये भारी लगी है
दवा इसकी  कोई  बनी ही नही है
मुल्क में मोहब्बत कहीं भी नहीं है

देसी ,पहाड़ी ,कुमाउनी ,गढ़वाली
क्या -क्या हम सब बने जा रहे हैं
क्षेत्रीयता  के  नारे  दिए जा रहे हैं
कमीनी सियासत किए जा रहे हैं

ठाकुर ,  ब्राह्मण , धोबी  व तेली
हरिजन ,गडरिया,मुसहर,तमोली
हलिया,पितलिया,खसिया,पनोली
हिस्से पे  हिस्से किए जा रहे हैं

आओं ,सभी साथ मिलकर बढ़ो अब
दिल में ये नारा लिखो आज सब
ये हरकत वो जो किए जा रहे हैं
उनके कपड़े उतारो,उन्हें भून डालो

दुबारा न सर अब उठ सके किसी का
उनके गर्दन में फाँसी के फंदे लगा दो
टांग दो उनकी लाशों को चौराहों  पर
सारी दुनियाँ को उनकी हकीकत बता दो
                     
                          अज़ीज़ जौनपुरी

नोट : प्रथम चार पंक्तियों में "वाद " का अर्थ भरोसा या दिलासा से जुडा है
         शेष पंक्तियों में "वाद" का अर्थ जातिवाद , धर्मवाद ,क्षेत्रवाद इत्यादि से जुड़ा है ।

5 comments:

  1. दुबारा न सर अब उठ सके किसी का
    उनके गर्दन में फाँसी के फंदे लगा दो
    टांग दो उनकी लाशों को चौराहों पर
    सारी दुनियाँ को उनकी हकीकत बता दो ।
    nice presentation.

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