चेहरा धड़ से अलग देख रहा हूँ
अपना चेहरा पूरा नंगा, चेहरे पर रंगीन नकाबें
लिए हाथ ख़ुद पत्थर मैं अपना चेहरा देख रहा हूँ
ख़ुद के भीतर नफ़रत की यह कैसी दिवार खड़ी है
कर ख़ुद को बेशर्म आज ख़ुद को नंगा देख रहा हूँ
मेरे माथे पर गुनाह की एक नहीं हज्जार लकीरें
हर सलवट पर लिखे गुनाह को रह-रह कर देख रहा हूँ
लगी शर्त है हर चेहरे में देखो कौन बड़ा कातिल है
हर कातिल का चेहरा अपने चेहरे में मैं देख रहा हूँ
बताते जा रहा हूँ ख़ुद को मील का पत्थर
कदम - कदम पे ख़ुद का फिसलना देख रहा हूँबताते जा रहा हूँ ख़ुद को मील का पत्थर
न बन सका कोई हर्फ़ मेरे दिल का आईना ता-उम्र
आज "अज़ीज़" का चेहरा धड़ से अलग देख रहा हूँ
अज़ीज़ जौनपुरी
लगी शर्त है हर चेहरे में देखो कौन बड़ा कातिल है
ReplyDeleteहर कातिल का चेहरा अपने चेहरे में मैं देख रहा हूँ
gajab bhai ji bahut khub
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
अब तो बस अलगाव की,चलने लगी बयार।
जीवन जीने का यहाँ, खिसक रहा आधार।।
--
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज बुधवार 13-03-2013 को चर्चा मंच पर भी है! सूचनार्थ...सादर!
ReplyDeleteसादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
कमाल ... लाजवाब..वाह!
ReplyDeleteमील का पत्थर-
ReplyDeleteफिसलता दिख रहा है-
गजब भाव हैं आदरणीय-
आभार आपका-
umda
ReplyDeleteअज़ीज़ भाई आज हर शख्श ऐसे ही अ -संपृक्त महसूस कर रहा है खुद से व्यवस्था से ,परिवेश से .
ReplyDeleteकभी कभी खुद की जिन्दगी से कई प्रश्न पूछ बैठते हैं हम
ReplyDeleteऔर जवाब संतोषजनक नहीं मिलता ,,,,,
बहुत बढ़िया ,,,,,सार्थक रचना
सादर !
लगी शर्त है हर चेहरे में देखो कौन बड़ा कातिल है
ReplyDeleteहर कातिल का चेहरा अपने चेहरे में मैं देख रहा हूँ,,,,बहुत उम्दा शेर,,,,
Recent post: होरी नही सुहाय,
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति,आभार.
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली
ReplyDeleteएक सुंदर आत्मावलोकन का नजरिया प्रस्तुत किया है आपाद..
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