चेहरे पे कालिख मला कीजिए
तोड़ सारी हदों को है तुमने दिया
अपने चेहरे पे कालिख मला कीजिए
हया लुट रही है उजालों में दिन के
चेहरा अपना अँधेरों में धुला कीजिए
होठों पे है तेरे विषैले भुजंगों का पहरा
अपने होठों से सबको डसा कीजिए
बेशर्मियाँ भी अब तो घबराने लगीं हैं
शर्म के नाम पर सबको छला कीजिए
जिस्म की भूख तो है जाँ से भी बड़ी
जिस्म की आग ले अब जला कीजिए
"अज़ीज़" तुमको है जिया किस तरह
जिस्म की आग में जल मरा कीजिए
अजीज़ जौनपुरी
जिस्म की भूख तो है जाँ से भी बड़ी
जिस्म की आग ले अब जला कीजिए
"अज़ीज़" तुमको है जिया किस तरह
जिस्म की आग में जल मरा कीजिए
अजीज़ जौनपुरी
बहुत ही भावपूर्ण ग़ज़ल है अजीज भाई,आभार.
ReplyDeleteबेशर्मियाँ भी अब तो घबराने लगीं हैं
ReplyDeleteशर्म के नाम पर सबको छला कीजिए.
उम्दा शेर, जानदार गज़ल. बेहतरीन लेखन.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहतरीन गज़लतोड़ सारी हदों को है तुमने दिया
ReplyDeleteअपने चेहरे पे कालिख मला कीजिए
हया लुट रही है उजालों में दिन के
चेहरा अपना अँधेरों में धुला कीजिए
क्या बात है ?बहुत खूब कही है जो भी कही है .
ReplyDeleteबेशर्मियाँ भी अब तो घबराने लगीं हैं
ReplyDeleteशर्म के नाम पर सबको छला कीजिए ..
वाह जी वह ... कमाल कर दिया इस शेर में आपने ... शर्म के नाम पे ही छलना ...
बढ़िया लिख रहे हैं आप आपकी टिप्पणियाँ हमें भी प्रेरित करती हैं .
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