मिलने आ जाना कह दे
पाँव के छालों ने बारहां रुलाया है मुझे
बस आख़िरी बार तूँ घर आना कह दे
बस आख़िरी बार तूँ घर आना कह दे
कसम ख़ुदा की न पाँव रखूँगा कूचे में तेरे
आज तूँ मुझको अपना ठिकाना कह दे
चराग बन के जला हूँ,तुम्हारी महफ़िल में
मुझे अपना इमान ,अपना दीवाना कह दे
ता - उम्र छत मयस्सर न हुई मुझको
अपनी पलकों में बसा रुक जाना कह दे
ता - उम्र छत मयस्सर न हुई मुझको
अपनी पलकों में बसा रुक जाना कह दे
याद है, साथ म्ररने की कसम खाई है\
कहीं आज तूँ इसको न बहाना कह दे
कहीं आज तूँ इसको न बहाना कह दे
राहे- मदीना पे कदम बढ़ गए हैं मेरे
तूँ आज दिल के कूचे हो के जाना कह दे
"अज़ीज़" आज़िज़ आ गया है इतना
तूँ, अज़ीज़ को"मिलने आ जाना कह दे"अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है अजीज भाई,आभार.
ReplyDeleteराहे- मदीना पे कदम बढ़ गए हैं मेरे
ReplyDeleteतूँ आज दिल के कूचे हो के जाना कह दे
बेहद सूफियाना , काश शीर्षक कुछ और होता ,ये मेरा सोचना है !उत्तम प्रस्तुति
एक निश्छल अभिलासा और अंतहीन व्यथा के साथ
ReplyDeleteसमर्पण का संकेत देती सुन्दर प्रस्तुति**************************************
कसम ख़ुदा की न पाँव रखूँगा कूचे में तेरे
आज तूँ मुझको अपना ठिकाना कह दे
चराग बन के जला हूँ,तुम्हारी महफ़िल में
मुझे अपना इमान ,अपना दीवाना कह दे
ता - उम्र छत मयस्सर न हुई मुझको
अपनी पलकों में बसा रुक जाना कह दे
याद है, साथ म्ररने की कसम खाई है
कहीं आज तूँ इसको न बहाना कह दे
राहे- मदीना पे कदम बढ़ गए हैं मेरे
तूँ आज दिल के कूचे हो के जाना कह दे
पाँव के छालों से डूब मर जाना तक लम्बा सफर ....बहुत खूब
ReplyDeleteअज़ीज़ जी ,एक सुझाव वो भी बना बनाया १.शीर्षक "
ReplyDeleteख़ुदा तूँ मिल आना कह दे " २ आखिरी पंक्ति में " तुमसे के स्थान पर "इतना "जा डूब मर जाना कह दे" के स्थान पर "आज तूँ मिल आना कह दे,
चराग बन के जला हूँ,तुम्हारी महफ़िल में
ReplyDeleteमुझे अपना इमान ,अपना दीवाना कह दे ..
सच है ....
जलने का कुछ तो इनाम दे दे
तू मुझे अपना स नाम दे दे ...
कसम ख़ुदा की न पाँव रखूँगा कूचे में तेरे
ReplyDeleteआज तूँ मुझको अपना ठिकाना कह दे
badhiyaaa ashaar .
बढ़िया अशआर एक से बढ़के एक .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
"अज़ीज़" आज़िज़ आ गया है इतना
ReplyDeleteतूँ, अज़ीज़ को"मिलने आ जाना कह दे"
शानदार शेर.