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Monday, May 27, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : मौत को बुला दे कोई

             मौत को बुला दे कोई  


       नीद आ गई है दिले मासूम को जगा दे कोई 
       फूल   हसरतों  के  पलकों  में  सज़ा  दे कोई

      न ख्वाब आये, न सहर हुई , न खुली पलकें 
      या  उनको  बुला दे ,या मौत को बुला दे कोई
  
      है कोई एक चेहरा जो रह रह के सदा देता है
      अपने सुर्ख  होठों को पलकों पे सज़ा दे कोई

      चाँदनी रात  तपिस  सूरज की  हुई जाती है
      है आखिरी वक्त मेरा,  चाँद को बता दे कोई

      चंद   घड़ियाँ  हीं  हैं, अब  बची  ज़िन्दगी की
      भर बाँहों में,सजा उम्र  कैद की  सुना दे कोई

                                      अज़ीज़ जौनपुरी
     
    
     
     
      



     

15 comments:

  1. बेहतरीन रचना | बधाई

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  2. चंद घड़ियाँ हीं हैं, अब बची ज़िन्दगी की
    भर बाँहों में,सजा उम्र कैद की सुना दे कोई
    ये हुई न बात

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  3. बेहतरीन गजल " न ख्वाब आये, न सहर हुई , न खुली पलकें ,या उनको बुला दे ,या मौत को बुला दे कोई

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  4. बेहतरीन गजल जितनि तारिफ करे कम...्वाह वाह

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  5. बहुत सुन्दर आभार . छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने

    साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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  6. बहुत सुन्दर .आभार . छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने

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  7. बहुत ही सुन्दर लाजबाब ग़ज़ल की प्रस्तुति.

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  8. बहुत सुन्दर मनभाती रचना

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  9. बहुत अच्छी रचना सुंदर प्रस्तुति!!

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  10. न ख्वाब आये, न सहर हुई , न खुली पलकें
    या उनको बुला दे ,या मौत को बुला दे कोई ..

    बहुत खूब ... यार न हो तो मौत आ जाए ...
    गज़ब का कलाम है ...

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  11. बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय ... बधाई !

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  12. Beautiful emotions and its expressions.

    Bharat

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  13. न ख्वाब आये, न सहर हुई , न खुली पलकें
    या उनको बुला दे ,या मौत को बुला दे कोई

    ....बहुत खूब! लाज़वाब ग़ज़ल...

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  14. वाह.बहुत उम्दा प्रस्तुति .बेहतरीन

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