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Friday, September 18, 2015

अज़ीज़ जौनपुरी : तोड़ दी माला किसी नें






नाम चरणामृत का लेकर
विष  पिला डाला किसी नें 
जब सुमिरनी  हाथ में ली
तोड़  दी  माला  किसी नें 

सत्य की इक मूरत गढ़ी थी 
चूर  कर   डाला   किसी  नें
न्याय  की  जब  दी  दुहाई
बेडीं पाँव में डाला किसी नें 

ले  हाथ  समिधा ज्यों बढ़ा
बुझा दी अग्नि-ज्वाला किसी नें 
आरती      की    थाल   से 
घर   जला  डाला  किसी नें 

बन  के   मीरा  जब  पुकारी
दे   दिया   प्याला  किसी नें 
वीणा  जब  अहिंसा  की उठी
धड़ अलग कर डाला किसी नें 


                अज़ीज़ जौनपुरी


 




Wednesday, January 7, 2015

अज़ीज़ जौनपुरी : पिया गंध मोरे सांसन में है


                  



सुख  दुख  का  है ताना  बाना
जीवन   तो   है   आना  जाना

जोलहा जी  इक साड़ी बनाना
रंग  पिया  ओहमा  भर  जाना

जीवन है सांसों    की    गठरी  
कभी   ओढ़ना  कभी बिछाना

पिया  गंध  मोरे  सांसन में है
वही  सूँघना   वही   सुंघाना   

काशी    देखी    मथुरा   देखा 
कण कण  मोरे पिया समाना

काबे   गया   कैलाश  भी देखा 
देखली  पिया  का  ताना बाना

मकड़   जाल  जीवन  है सारा 
मेरो  पिया  मोहें तुम्हीं बचाना

अँखियन में मोरे तुम्हरी सूरत
पलक  सेज  पर  मोहे  सुलाना

अँखियन से असुवन ढरकत है
असुवन को  तुमही समझाना

जिवन में  एक आस  तुम्हारी
डोर प्रीति  की  नहिं  उलझाना

चली चला का समय है आया
तुम्हरे संग मोहे है उड़  जाना

                      अज़ीज़ जौनपुरी
              
ओहमा --उसमें

Tuesday, December 23, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : मिलन की घड़ी में प्रणय दीप पावन





 मिलन की घड़ी में प्रणय दीप पावन 
 तुम्हीं  ने जलाए  तुम्हीं  नें बुझाए 
 लिखी थी कहानी कहीं इक शिला पर 
 समय के बवंडर नें जिसको मिटाए

 छिन गई सारी खुशियाँ जीवन की अपने 
 चादर तिमिर की किसी ने उढाए
 चमन में न तितली दिखती कहीं भी 
 तूफ़ा ने कितने कहर ज़ुल्म ढाए

 इक तस्बीर आँखों में उभरी थी कोई 
 समय के थपेड़ो ने जिसको मिटाए 
 ख्वाहिशें चूमने के धरी रह गईं 
 वक्त नें भी न जाने सितम कितनें ढाए

 इक लिखी थी कहानी आँसुओं को पिरोकर
 जिसको अपनों  नें खारा समंदर बताए
 पर लगा कर उड़ा था गगन चूमनें मैं 
 काट मेरे परों को किसी नें गिराए 

 बन शलभ दीप पर जब मिटने चला 
 दिए प्यार के किसी नें बुझाए 
 माँगी थी मिटटी से महक जिंदगी की 
 बिकल प्राण मेरे किसी नें उड़ाए
 
 प्रणय की डगर पर जब बढे पाँव मेरे 
 किसी नें डगर पर कांटें बिछाए 
 उठा शूल बक्ष में जब अपनें चुभोया 
 लहू को किसी नें पानी बताए 
 
 अर्चना प्यास में छटपटाती रही 
 बंदना के सकल स्वर किसी नें मिटाए 
 उजालों का स्वागत जब करने बढ़ा 
 तिमिर को धरा पर किसी नें बुलाए

 ले चला थाल में जब पुष्प अर्चना के 
 सकल पुष्प थाली के किसी ने गिराए 
 जब उठा पुष्प मैंने लगाया ह्रदय से 
 श्याम मेघो ने कितने बिजली गिराए  

 मधुर मुस्कान मेरी कहीं  खो गई 
 मैनें सपनों में कितने आंसू बहाए 
 डोर उम्मीद की पकड़ मैं जब निकला  
 प्रणय पथ पर किसी नें तुहिन कण बिछाए 

                 अज़ीज़ जौनपुरी

Saturday, December 13, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : सूनी सेज तुम्हरि बिन साजन






कहाँ   गयो  मेरो   प्रीतम    प्यारे
अँखियाँ   रोअत    साँझ    सकारे
सूनी  सेज  तुम्हरि बिन   साजन
कब   होइहीं   धन    भाग  हमारे


बहुत   दिनन  से  अँखियाँ  तरसत
कहाँ   छुप  गए  मेरो साजन प्यारे
छतिया  बिच  अगिया  दहकत  हैं
घिर  - घिर   आवत    बदरा   कारे 

दरस  परस  बिन अँखियाँ  रोअत
कब   आओगे    मेरो मोहन प्यारे
मन  मंदिर में बस  तुम्हरी सूरत
तुम  बिन  जीवन भयो  अंधियारे

कबिरा तोहे  संग  व्याह  रचायो
संग सातव  बचन  पढ़ायो  प्यारे
निरखत अँखियाँ रोअत अँखियाँ
अब आ भी  जाओ  मोहन प्यारे

सेजिया     सूनी    मंगिया  सूनी
कबीरा   रोअत   दिलवा   उघारे
केहि सवतन संग सेजिया सोवत
काहे      फूटल       भाग    हमारे

न   मरती   आस   न  जाती सांस
रोवत      कबिरा    द्वारे -   द्वारे
मन-मन्दिर माँहि भयो अँधियारा
दे  दरस  परस  कर  दो   उजियारे

उघारे --खोल कर
धन भाग -- भाग्य का धन्य होना
केही --किस
माँह--के भीतर 
काहे--किसलिए                       अज़ीज़ जौनपुरी




Thursday, December 11, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : न रोज खाता न उधार करता हूँ



न  रोज  खाता  हूँ   न  उधार  करता हूँ
न ग़मों को जिंदगी में सुमार करता हूँ

ज़ुल्मों-सितम कभी मेरे ख़ूँ में नही रहा 
मैं खुद पे  बेइन्तिहाँ   ऐतबार  करता हूँ

दुनिया की खातिर रेहन  रख दिया खुद को  
खुद से ज्यादा मैं दुनिया को प्यार करता हूँ

इश्क -ए- ख़ुदा पे  इक  किताब  लिखी है
सच है कि खुदा पे मैं जाँ निसार  करता हूँ

न हसरते -दीद रही न दस्ते -उम्मीद रही
अपनी  खमोशिओं को मैं  बहार  कहता हूँ

सजा  के  रोज  रूखे- अज़ीज़   पे  गुन्चें
मैं   खुद  को   अपना   यार    कहता हूँ

सहन उनका मुनव्वर वक्ते -नेक रहे
मैं इक फ़क़ीर हूँ,ख़ुदा का इंतजार करता हूँ


               अज़ीज़ जौनपुरी

Sunday, November 30, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : साधुवेश भेड़िया है औ है किसी मंत्री का साला




रामनामी  ओढ़  कर  जो  जप  रहा  है  रूद्र - माला
है  वही  यह  शख्स  जिसके खूँ में लिखा है घोटाला

कर  लिया  है  उसने   देखो   छद्म  रूप  ग्रहण  कैसे
साधुवेश  भेड़िया  है  औ  है  किसी  मंत्री  का साला

थी  लूटी  कल इसीनें  आबरू, माथे पर लगा चन्दन
मिला  ज़हर  जिसने  दवा  में  मुह कर दिया  काला

क्या कहें,  कैसे  कहें,  किसको  कहें  , इस   भीड़ में
सजिसों  के  मुल्क में    दाल  में   है  कुछ तो काला

अर्थी उठ गई विश्वास की सत्य आग में है जल रहा 
व्यभिचार चोरी औ डकैती का दिख रहा है बोलबाला

ले व्रत कत्ल खून औ फ़िरौती लूट पाट औ   छिनैती
रक्षक बन के  भक्षक  देखो  जप  रहे अन्याय-मला

देखो  कहीं  ये   इस  मुल्क  को  न  नीलाम  कर दें
सिर्फ  ख़ुदा  ही  बचा  है  मुल्क  का  एक  रखवाला

                                           अज़ीज़ जौनपुरी





Friday, November 28, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : तेरी खुशबू तेरा हुश्ने ज़माल रखता हूँ





   ज़िगर  में  अपने जब्ते- नाल रखता हूँ 
   तेरी खुशबू तेरा हुश्ने  जमाल रखता हूँ

   तेरी दोशीजगी हमें जीने नहीं देती
   और मैं हूँ के जीने का मज़ाल  रखता हूँ

   खस्तातनों से हाले - दिल न  पूछिए
   दिल में जीने का माल-ओ-मनाल रखता हूँ 

   जिश्म  में तमाम जख्म मुस्कुराते हैं
   औ ज़िगर में  मैं तेरा ख्याल रखता हूँ 

  तू न कर खून-ए-दिल-हसरत -ए आज
  चाक दामन में आरजू-ए-कमाल रखता हूँ  

  मुन्तिजर बैठे हैं के फ़लक पे  महताब उभरे
  दस्त -ए-तनहाई में हौशलों का माल रखता हूँ 
   
                              अज़ीज़ जौनपुरी

  
जब्ते नाल = मुह से आवाज न निकलने देना
जमाल = सौन्दर्य ,मुखकान्ति
दोशीजगी= अल्हड़पन
मजाल =हिम्मत
खस्तातनों = दुखी
माल-ओ-मनाल= दौलत
खून-ए-दिल-हसरत -ए  =  आकांक्षाओं का खून
मुन्तिजर = प्रतीक्षारत