नाम चरणामृत का लेकर
विष पिला डाला किसी नें
जब सुमिरनी हाथ में ली
तोड़ दी माला किसी नें
सत्य की इक मूरत गढ़ी थी
चूर कर डाला किसी नें
न्याय की जब दी दुहाई
बेडीं पाँव में डाला किसी नें
ले हाथ समिधा ज्यों बढ़ा
बुझा दी अग्नि-ज्वाला किसी नें
आरती की थाल से
घर जला डाला किसी नें
बन के मीरा जब पुकारी
दे दिया प्याला किसी नें
वीणा जब अहिंसा की उठी
धड़ अलग कर डाला किसी नें
अज़ीज़ जौनपुरी