न रोज खाता हूँ न उधार करता हूँ
न ग़मों को जिंदगी में सुमार करता हूँ
ज़ुल्मों-सितम कभी मेरे ख़ूँ में नही रहा
मैं खुद पे बेइन्तिहाँ ऐतबार करता हूँ
दुनिया की खातिर रेहन रख दिया खुद को
खुद से ज्यादा मैं दुनिया को प्यार करता हूँ
इश्क -ए- ख़ुदा पे इक किताब लिखी है
सच है कि खुदा पे मैं जाँ निसार करता हूँ
न हसरते -दीद रही न दस्ते -उम्मीद रही
अपनी खमोशिओं को मैं बहार कहता हूँ
सजा के रोज रूखे- अज़ीज़ पे गुन्चें
मैं खुद को अपना यार कहता हूँ
सहन उनका मुनव्वर वक्ते -नेक रहे
मैं इक फ़क़ीर हूँ,ख़ुदा का इंतजार करता हूँ
अज़ीज़ जौनपुरी
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