ज़िगर में अपने जब्ते- नाल रखता हूँ
तेरी खुशबू तेरा हुश्ने जमाल रखता हूँ
तेरी दोशीजगी हमें जीने नहीं देती
और मैं हूँ के जीने का मज़ाल रखता हूँ
खस्तातनों से हाले - दिल न पूछिए
दिल में जीने का माल-ओ-मनाल रखता हूँ
जिश्म में तमाम जख्म मुस्कुराते हैं
औ ज़िगर में मैं तेरा ख्याल रखता हूँ
तू न कर खून-ए-दिल-हसरत -ए आज
चाक दामन में आरजू-ए-कमाल रखता हूँ
मुन्तिजर बैठे हैं के फ़लक पे महताब उभरे
दस्त -ए-तनहाई में हौशलों का माल रखता हूँ
अज़ीज़ जौनपुरी
जब्ते नाल = मुह से आवाज न निकलने देना
जमाल = सौन्दर्य ,मुखकान्ति
दोशीजगी= अल्हड़पन
मजाल =हिम्मत
खस्तातनों = दुखी
माल-ओ-मनाल= दौलत
खून-ए-दिल-हसरत -ए = आकांक्षाओं का खून
मुन्तिजर = प्रतीक्षारत
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