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Friday, November 28, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : तेरी खुशबू तेरा हुश्ने ज़माल रखता हूँ





   ज़िगर  में  अपने जब्ते- नाल रखता हूँ 
   तेरी खुशबू तेरा हुश्ने  जमाल रखता हूँ

   तेरी दोशीजगी हमें जीने नहीं देती
   और मैं हूँ के जीने का मज़ाल  रखता हूँ

   खस्तातनों से हाले - दिल न  पूछिए
   दिल में जीने का माल-ओ-मनाल रखता हूँ 

   जिश्म  में तमाम जख्म मुस्कुराते हैं
   औ ज़िगर में  मैं तेरा ख्याल रखता हूँ 

  तू न कर खून-ए-दिल-हसरत -ए आज
  चाक दामन में आरजू-ए-कमाल रखता हूँ  

  मुन्तिजर बैठे हैं के फ़लक पे  महताब उभरे
  दस्त -ए-तनहाई में हौशलों का माल रखता हूँ 
   
                              अज़ीज़ जौनपुरी

  
जब्ते नाल = मुह से आवाज न निकलने देना
जमाल = सौन्दर्य ,मुखकान्ति
दोशीजगी= अल्हड़पन
मजाल =हिम्मत
खस्तातनों = दुखी
माल-ओ-मनाल= दौलत
खून-ए-दिल-हसरत -ए  =  आकांक्षाओं का खून
मुन्तिजर = प्रतीक्षारत

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