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Saturday, September 7, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : साली लंदन वाली देना

     साली लन्दन वाली देना 

                  ( हास्य व्यंग )


भगवन बड़ी तपस्या  की है ,झोली मेरी मत ख़ाली देना
सौ से ज्यादा बहने हों बस , बस ऐसी ही घरवाली देना 

है करबद्ध  निवेदन यह मेरा,  एक विदेसी घरवाली देना
सुबह चाय संग  भंग पिलाये, बीवी ऐसी दिलवाली देना 

नहीं   पुजारिन भकतिन देना ,  पीनें पिलाने वाली देना 
जितनी भी देना सब के सब-पब,बार कैसिनो वाली देना 

होटों पर मुस्कान न हो उसके , लड़ने लड़ानी  वाली देना 
बदन  ज़रा  जब  दर्द  से  टूटे ,  दारू  पिलाने  वाली देना

एक नहीं, सौ  साली देना  सब   गोरी  चमड़ी वाली देना 
हों सब सब खेलनें माहिर   सब   ओलंपिक  वाली देना

लम्बी कूद में हों सब माहिर, ऊँची  कूद में अव्वल देना
पारंगत हों रस्सा-कसी में,बस  ऐसी ही सब साली देना

डिस्क बना कर तवा चलाये ऐसी  डिस्कस थ्रो वाली देना  
भगवन जीतनी भी साली देना सब स्वर्ण पदक वाली देना 

घरवाली जब -जब  मैके जाये, होटल में खाने वाली देना 
सब  के  सब  बलकट्टी  देना ,  नहीं कोई  लट  वाली देना 

रात को जब बारह बजते हों सब बार में जाने वाली देना 
एक नहीं सौ दिल हों जिनके सब पीने-पिलाने वाली देना 

हरे गुलाबी लाल बैगनी सब ऐसी लिपिस्टिक वाली देना
नख  खंजर हों , तेज़  धार हो,  सब नान- वेज़ वाली देना

भगवन नहीं  समोसे  वाली,    नहीं  कचौड़ी  वाली देना
ईज़ा, पीजा ,चाउमीन  बर्गर   मोमो  वाली  साली  देना

ऐसी  महँगाई   में  भगवन, सब कम  कपड़े वाली देना 
इकनी  बिकनी या हाफ पेंट  औ बनियाइन वाली देना

सभी  तरन्नुम  वाली  देना , हँसने  हँसाने   वाली देना
सब   हँसी ठिठोली  वाली देना,  ठट्ठा लगाने वाली देना 

कृपा करो हे भगवान मुझ पे,अगला जनम लंदन में देना
घरवाली हो कहीं की भी पर साली सब लन्दन वाली देना

अगले जनम में लन्दन जन्मू एक ऐसा मुझको बर देना
सुरा  सुंदरी  मधुशाला  संग , एक   नहीं  सौ  साली देना 

                                               अज़ीज़ जौनपुरी 










Tuesday, September 3, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : दुआएँ मोहब्बत की लाये हुए हैं

दुआएँ  मोहब्बत की लाये हुए हैं 


हम फ़कीरों की बस्तीसे आये हुए हैं 
दुआएँ मोहब्बत की लाये हुये हैं 

खुशियाँ ज़माने की हों हर को मुबारक 
चरागे मोहब्बत जलाये हुए हैं 

सबा हमसे मंज़िल डगर पूछतीं है 
बता दो कि हम चमन ले के आये हुए हैं 

नफ़रत को शोलों की महफ़िल सजी है 
हम मोहब्बत की नजरें बिछाये हुए हैं 

सुबह करीब है न दिल कहीं घबरा जाये 
हम चाँद संग सूरज को लाये हुए हैं 

मेरे गुरुओं के पावों  पे मेरा सर है गिरा 
उनकी ख़िदमत में दिल ले के आये हुए हैं 

नमन आज गुरुजन को हम सब मिल  के करें 
हम जो भी हैं उन्ही के बनाये हुए हैं 

                            अज़ीज़ जौनपुरी 

Tuesday, August 27, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी लन्दन की गलिओं कुछ तो बोलो

लन्दन की गलिओं कुछ तो बोलो
       



(नोट्टिंग हिल कार्निवाल ,लंदन )
          26 अगस्त 2013

एक शोर मचा है लंदन  में 
कब हुस्न के प्याले  छलकेगें,
कब जामें -मोहब्बत बहकेगी
कब जिश्म  के शोले भड़केंगें
लंदन की गलियों कुछ तो बोलो ………………

कब नथें उतारीं जायेंगीं,
कब ताज़ पिन्हाये जायेंगें
कब नाज़ उतारें जायेंगें ,
कब हुश्न की लपटें उटठेगीं
लंदन की गलियों कुछ तो बोलो …………….
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कब लब पे तबससुम थिरकेगी
कब दिल की धड़कन धड़केगी
कब ख़्वाबों की पाजेंबें खनकेगीं
कब हुश्ने -नज़ाकत बरसेगी
लंदन की गलिंयों कुछ तो बोलो.………………
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कब रास रचायें जायेंगें
कब थेम्स झूम-झूम कर  नाचेगी 
कब रश्मे निभाई जाएगीं
कब आग लग लगाई जाएगी 
लंदन की गलिओं कुछ तो बोलो…………………

कब महफिल जश्न की बहकेगी
कब ज़ाम जिश्म टकरायेंगे
कब रात की रानी महकेगी
कब नंगा लन्दन नाचेगा
लन्दन की गलिओं  कुछ तो बोलो ……………
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कब अक्ल के ताले खुल्लेंगें
कब लन्दन होश में आएगा
कब तहजीबें सिखाई जायेगीं
कब हया के फूल खिलायेंगें
लन्दन की गलिओं कुछ तो बोलो ……………


                            अज़ीज़ जौनपुरी 



      

Sunday, August 25, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : लन्दन की फ़ज़ाओं में

    लंदन  की फ़ज़ाओं में 



   क्या  हुस्न   क्या  अदा   है  लंदन  की   फ़ज़ाओं में 
   मदहोस     मोहब्बत   है     लंदन    की   सदाओं में 

   थेम्स  की   नज़ाकत    है , कुदरत  का   करिश्मा है
   शोला  भी  है   शबनम  भी  है  लंदन  की  हवाओ में 

    हर आँख में सागर है,मय है  हुश्न -ए-साज़े- तरब है 
    गुलनार  की  खुशबू  है,  मदहोश काफ़िर अदाओं  में 

    हर  रुखसार पे जड़े हैं सुर्खी के बहकते नगीने  लाखों   
   बहकी हुयी तबस्सुम  फिरती है,लन्दन की वफ़ाओं में  

   रक्से मय तेज़ करो तेज़ करो कि न हिज्र की रात रहे  
   ज़ाम छलकाते माहताब उतरा है लन्दन की हवाओं में 

   एक   बात   अखरती  है    मेरे   दिल    पे गुज़रती  है 
   तहज़ीबो  गंगो- ज़मन लुट गई  लन्दन की  हवाओं में  

                                                  अज़ीज़ जौनपुरी   

    


   

Monday, August 19, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : उनको आज़ रो बैठे

उनको आज़ रो बैठे
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 ग़र तेरी नज़रें- नवाज़  हो ज़ाये
 मेरी  ख़्वाहिस नमाज़ हो जाये

तमाम उम्र  हिज़्र में गुज़री
आओ कि ज़िन्दगी साज़  हो जाये

क्या कुछ और देखने को बाक़ी है
क्यों न धड़कन मेरी आवाज़ हो जाये

आज बाम पर चाँदनी नहीं उतरी
क्यों न कूये-यार में नमाज़ हो जाये 

न जानें क्यों उनको आज रो बैठे
इश्क़ रुस्वा न रहे और राज़ हो जाये

                    अज़ीज़ जौनपुरी 
            





Wednesday, August 14, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : मेरा मुल्क मेरा मज़हब हो

               मेरा मुल्क़ मेरा मज़हब हो 
         


          मेरा  मुल्क  मेरा  मज़हब   हो ,  मेरा  मज़हब   मेरा  ईमान रहे
          फ़लक से चाँदनी उतरे लिए एक हाथ में गीता,एक में कूरान रहे 
          फ़िक्र  ज़हन में रखना  मुल्क  के रुतबे  का  मेरे  बच्चों  हरदम 
          यही आरज़ू रहे,यही तलब रहे  मुल्क का रुतबा रहे औ शान रहे 
          ये मुल्क हँस -हँस के कहे,क्या औज़  क्या रहबरे कामिल पाया 
          यही आरज़ू,यही तमन्नाये-वफ़ा,यही मसला यही  अरमान रहे 
          गाँधी के लहू ,को भगत की शान को, न  कभी आँच लगने पाए 
          हिमाला की लाज़ रखना , यही फ़िक्र, यही दीन ,यही ईमान रहे           
          रश्क  ज़न्नत  का सलामत रहे  कश्मीर के ज़लवा -ए -सहर से
          गुँचे हुब्बे-वतन के खिलते रहें ताबाँ वतन की आन रहे शान रहे 
          हर  कतरा  लहू का मुल्के  -  शम्मे - अदब  रोशन की राहे चले 
         कायम ये  ख्वाहिश रहे गर्दो गुबार  ख़ाके  वतन मेरा कफ़न रहे

                                                                      अज़ीज़ जौनपुरी 







           
        

Saturday, August 10, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : चुरा गया कोई


  
         चुरा गया कोई 
 

 
    हंस-  हंस  के  ज़िन्दगी  को रुला गया कोई 
    बुलानी मौत थी , ज़िन्दगी  बुला गया कोई 

    भूख  से रो - रो  कर  मर  गया कोई   बच्चा 
    उम्र  भर  के  लिए  सिसकियाँ  दे गया कोई 

    जो  यादें  ख्वाबों के  साथ - साथ चलतीं थीं 
    उन  ख्वाबों  को   बेड़ियाँ  पहना  गया कोई 

    बड़ी  अज़ीब  दुनिया  है  न  समझ  सका मैं 
    नींद   के   साथ   रात   भी  चुरा   गया  कोई  

   वक्त  थोड़ा - थोड़ा  जब   मेहरबां  होने लगा 
   वक्त  का  रुख  मोड़   कर  चला  गया  कोई

   कसम खाते रहे  तमाम उम्र  साथ चलने की  
   बीच रास्ते  से  ही   उनको  फ़ुसला गया कोई 

  आज  आईं थी  वो  मेरे  घर  सुनाने  मुझको 
  आईना  दिखा  उनको  चुप  करा  गया  कोई 

                                          अज़ीज़ जौनपुरी